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ये हमारी तरह है सरल औ' सुगम,
सारे संसार में इसका सानी नहीं।
जो लिखा है उसी को पढ़ो मित्रवर,
बोलने में कहीं बेईमानी नहीं।
BUT व PUT का नहीं भेद इसमें भरा,
धाँधली की कहीं भी निशानी नहीं।
व्याकरण में भरा पूर्ण विज्ञान है,
जोड़ औ' तोड़ की कुछ कहानी नहीं।
सन्धि नियमों में पूरी उतरती खरी,
मातृभाषा हमारी बिरानी नहीं।
मेरे भारत की भाषाएँ फूलें-फलें,
हमको सन्तों की वाणी भुलानी नहीं।
"रूप" इसका सँवारें सकल विश्व में,
रुकने पाए हमारी रवानी नहीं।
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Waah bahut khub kahaa sundar rachna
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